Sunday, May 6, 2012

युहीं चलना है तो चलना क्यूँ !


किताबो के पन्नो में शब्द बनकर खो जाना क्यूँ !

हवाओ के रुख को अपना रुख बनाना क्यूँ !

पता है हमें भी मिट्टी का सफ़र करना है,लेकिन इस वक़्त को उस वक़्त से अभी से मिलाना क्यूँ !