Sunday, March 7, 2010

chahat ka mausam

My most favorite lines from the song Ku hawa of Veer-Zara.

एक दिन जब सवेरे सवेरे , सुरमई से अँधेरे की चादर हटा के
एक परबत के तकिये से , सूरज ने सर जो उठाया , तो देखा दिल की वादी में चाहत का मौसम है और यादों की डालियों पर अनगिनत बीते लम्हों की कलियाँ महेकने लगी हैं
अनकही अनसुनी आरज़ू , आधी सोयी हुयी आधी जागी हुयी
आँखें मलते हुए देखती है , लहर दर लहर मौज दर मौज , बहती हुयी ज़िन्दगी
जैसे हर एक पल नयी है , और फिर भी वही , हाँ , वही ज़िन्दगी
जिसके दामन में एक मोहब्बत भी है , कोई हसरत भी है
पास आना भी है , दूर जाना भी है , और ये एहसास है
वक़्त झरने सा बहता हुआ , जा रहा है , ये कहता हुआ
दिल की वादी में चाहत का मौसम है ,और यादों की डालियों पर
अनगिनत बीते लम्हों की कलियाँ महेकने लगी हैं |

No comments: